एक ऐसे सफर की ओर ले जा रहा हूँ जो अकसर अधूरा रह जाता है, वजह मैं भी नहीं समझ पाया अगर कोई फौजी भाई या किसी को पता हो तो कृपया जरुर टिप्पणी करें।
सफर में उलझन
एक सैनिक के जीवन में छुट्टी की भूमिका सबसे अहम है ना जाने कितने बार छुट्टी के सपने देखने के बाद एक बाद एक बार छुट्टी मंज़ूर होती है जिसमें मैं उस सैनिक की बात करूँगा जिसका सफर लम्बा हो। सैनिक को सेना द्वारा वारंट दिया जाता है जिससे उसे अपना ट्रेन का टिकट लेना होता है सैनिक यह कार्य छुट्टी जाने से लगभग महीना या दो महीना पहले कर लेता है। रेलवे विभाग से एक टिकट जो प्राप्त होता है वो प्रतीक्षा सारणी (वेटिंग लिस्ट) में रहता है। और जैसे का तैसा ही रह जाता है अंततः सैनिक को तत्काल टिकट करा के टिकट लेना पड़ता है अन्यथा जनरल डिब्बे में यात्रा करनी पड़ती है।
टिकट सम्बंधी समस्या
आप सोच रहे होंगे की यह तो मामूली सी बात है ऐसा लगभग सभी के साथ होता है। लेकिन ऐसा नहीं है रेलवे द्वारा सैनिकों को मिले वारंट के टिकट निकल जाने के बाद सभी टिकटों को प्रतीक्षा (वेटिंग) में रखा जाता है और वारंट के अलावा जो भी टिकट बाद में लिये जाते हैं लगभग उन सभी टिकटों को सीट उपलब्ध हो जाती है ऐसा लगभग हर सैनिक के साथ हमेशा ही होता है जिससे सैनिक को बहुत मुसीबतों का सामना करना पड़ता है जो एक सैनिक ही समझ सकता है।
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