शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

बेखौफ बाघों का आतंक


आज जिन्दगी का कुछ अलग दिन था ऐसे दिनों में से एक था जो शायद ही कभी आते हों, एक डर जो दिमाग से शुरू होकर दिल पर गहरा असर कर गया एक ऐसा एहसास दिला गया कि जिन्दगी की कीमत और अहमियत को आँखों के सामने ऐसे दर्शा गया कभी सोचा ही नहीं था कि जिन्दगी में इतना कुछ शामिल है।

गाँव में बढ़ता डर

     एक डर जो दिमाग में बुरे तरीके से समाया हुआ है ऐसा जानवर जो अधिकतर जानवरों को ही अपना भोजन बनाता आया है वो अब मेरे गाँव डूंगरी और आसपास के लगभग सभी गाँवों में अपनी ऐसी पहचान बना चुका है कि हर किसी के दिल में आज डर जाग गया है। उसकी खौफनाक करतुतें उसकी कहानी बन गयी हैं वो एक भयानक रूप लेकर राज कर रहा है उसका नाम हर किसी के जुबांन पर छलक रहा है वो और कोई नहीं बाघ (तेंदुआ) है।
बाघ और उनका झुण्ड अब तक ना जाने कितने पालतू जानवरों को अपना नीवाला बना चुका है जानवर तो दूर की बात इंसानों को भी अपना आहार बना रहा है इनका झुण्ड आदमखोर बन गया है हर वक्त मौके की तलाश में रहते हैं जैसे ही कोई अकेला कमजोर आदमी मिलता है उसे अपना नीवाला बना देतें हैं बहुत ही बिषम स्थिति हो गयी है गाँव घर में वन विभाग और अन्य कर्मचारी अपना कर्तव्य समझने में बहुत देर कर रहे हैं नुकसान की एक सीमा होती है लेकिन हर सीमाओं को पार करते हुए बाघ जंगलों से घर तक आ गये हैं और विभाग पिंजरे में कैदी की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

 चलते दिन और बढ़ता डर

 नुकसान बहुत दुःख की बात है कुछ दिन पहले ही लगभग २५-२६ वर्षीय विवाहित युवक दीपक को बाघ ने नोच डाला उसके बाद भी कुछ करवायी नहीं की गयी और कुछ दिनों बाद ही कमला देवी (४०-४१ वर्ष लगभग)को अपना शिकार बनाया और भी दो-तीन लोगों को उत्तराखण्ड, अल्मोड़ा, भैसियाछाना ब्लाक में बाघों ने अपना पोषण बनाया।

     क्षेत्र भैैसियाछाना के डूूूंगरी, ओडल गाँँव, बडगल अन्य कुुुुछ गाँँव ऐसे हैं जहाँ लगाातार बाघों का आतंक जारी है और अब तक कोई भी ऐसा दल नहीं बन पाया जो चिन्तन कर सके माना कि हमारा राष्ट्रीय पशु बाघ है लेकिन इसका ये मतलब तो नहीं की राष्ट्रीय पशु हमारे सभी पालतू पशुओं के साथ-साथ इंसानों को खाता जाय।



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