शहर नहीं मैं गांव हूं, हर दर्द की छांव हूं।
भूखा, प्यासा या गरीबी हर बेसहारे का पाऊं हूं।
शहर नहीं मैं गांव हूं कड़ी धूप की छांव हूं।
आंधियां, तूफान या बारिश से पानी छलक उठे।
फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं इसी गांव की नाव हूं।
शहर नहीं मैं गांव हूं और इसी गांव की छांव हूं।
भूखा, प्यासा या गरीबी हर बेसहारे का पाऊं हूं।
शहर नहीं मैं गांव हूं कड़ी धूप की छांव हूं।
आंधियां, तूफान या बारिश से पानी छलक उठे।
फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि मैं इसी गांव की नाव हूं।
शहर नहीं मैं गांव हूं और इसी गांव की छांव हूं।